Sunday, December 23, 2007

मंजिल पा ली हमने



मंजिल थी सामने , हम निकल पड़े ,

रास्ता था कठिन , फिर भी हम लड़े ,

हारना तो हमे था नहीं ,

क्योंकि जीतने की आदत जो पड़ी थी ,

हम चलते चलते थक गए , लड़ के चूर हो गए ,

हिम्मत हमारी देख के लोग रस्ते से हटने को मजबूर हो गए ,

रुकना हमे था नहीं , थम हम सकते नहीं ,

पग्दंदिया हमारा रास्ता न बन सकी ,

ऊँगली किसी की पकड़ के चलना हमारी फितरत न थी ,

रास्ता भटके हजारो बार पर हम डरे नहीं ,

अपनों ने ही धक्का दिया पर हम गिरे नहीं ,

पा ली आज मंजिल हमने ,

पूरे हुए जो अधूरे थे सपने

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