मंजिल थी सामने , हम निकल पड़े ,
रास्ता था कठिन , फिर भी हम लड़े ,
हारना तो हमे था नहीं ,
क्योंकि जीतने की आदत जो पड़ी थी ,
हम चलते चलते थक गए , लड़ के चूर हो गए ,
हिम्मत हमारी देख के लोग रस्ते से हटने को मजबूर हो गए ,
रुकना हमे था नहीं , थम हम सकते नहीं ,
पग्दंदिया हमारा रास्ता न बन सकी ,
ऊँगली किसी की पकड़ के चलना हमारी फितरत न थी ,
रास्ता भटके हजारो बार पर हम डरे नहीं ,
अपनों ने ही धक्का दिया पर हम गिरे नहीं ,
पा ली आज मंजिल हमने ,
पूरे हुए जो अधूरे थे सपने
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