Sunday, July 29, 2007

चाहता हूँ



थक गया मैं, थोड़ा सोना चाहता हूँ,


भाग रहा था, थोड़ा रुकना चाहता हूँ,

ज़िंदगी बीत रही थी, थोड़ा जीना चाहता हूँ,

नज़रें चुरा रहा था, अब उठना चाहता हूँ,

रोता रहा मैं, अब हँसना चाहता हूँ,

दूर चला गया था, अब वापस आना चाहता हूँ,

लड़ता रहा मैं, अब प्यार चाहता हूँ,

अंधेरे में जी रहा था, अब उजाला चाहता हूँ,

पेट भर रहा था, अब माँ के हाथों से एक निवाला चाहता हूँ,

शोर ज़िंदगी का हिस्सा था, अब शांति चाहता हूँ,

खो गया था, अब रास्ता ढूँदना चाहता हूँ,

चला जा रहा था, अब मंज़िल जानना चाहता हूँ,

अकेला था मैं, तेरा साथ चाहता हूँ,

ख़ुद से झूठला रहा था, अब सच बोलना चाहता हूँ,

ज़िंदगी की भागम भाग में फ़स गया था, अब सुबह का सूरज देखना चाहता हूँ,

आँखें बंद कर रखी थी, अब कुछ देखना चाहता हूँ,

चुप मैं बैठा था, अब कुछ बोलना चाहता हूँ,

अपनी असलियत खोता जा रहा हूँ, अब ख़ुद को पहचानना चाहता हूँ,

भीड़ में खोता जा रहा था, अब अपनी हस्ती बनाना चाहता हूँ,

चाँदनी को ही सवेरा समझता था, अब दिन देखना चाहता हूँ,

दम घुट रहा था, अब खुल के साँस लेना चाहता हूँ,

आगे बढ़ गया था, अब पीछे मुड के देखना चाहता हूँ,

दोस्त बहुत था, अब अपने पहचानना चाहता हूँ,

निर्ज़ीव की तरह सो रहा था, अब सपने देखना चाहता हूँ ....

2 comments:

Unknown said...

hi rahulji kahu ya mr writer kahu?...
this is me deepika...
a very nicely written thought...
keep it up...

bye
take care

KHUSHBOO said...

hey Rahul,wow yaar kya writer ho yaar.apne dil ki thoughts ko itne khubsorti se tumne is poem utarahai yaar.i just love it.its really nice.good
keep it up......
bye take care

Poetries inspired by life as it comes!

Popular Posts