Tuesday, March 06, 2007

यादें


याद आती है वो सुबह ,

याद आती है वो शाम ,

याद आती है माँ की सीख ,

याद आता है वो घर का आराम ,

याद आता है घर का हर कोना ,

याद आतें है घर के वो काम ,

याद आता है वो देर से जागना ,

याद आता है वो अल्प विराम ,

याद आती है वो दिन भर की मस्ती ,

याद आता है वो जीना बेलगाम ,

घर से दूर हूँ ,

इन्ही यादों में थक के चूर हूँ ,

यह भी क्या कोई जीने का ढंग है ,

न कोई सहारा न कोई संग है ,

हर पल घर जाने को उतावला हूँ ,

वापस उसी तरह जीने को बावला हूँ ,

ले चले कोई मुझे वहाँ जहाँ से मैं आया हूँ ,

जिस जगह को मैं कह सकू अपना और जिसके लिए न मैं पराया हूँ …..

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