याद आती है वो सुबह ,
याद आती है वो शाम ,
याद आती है माँ की सीख ,
याद आता है वो घर का आराम ,
याद आता है घर का हर कोना ,
याद आतें है घर के वो काम ,
याद आता है वो देर से जागना ,
याद आता है वो अल्प विराम ,
याद आती है वो दिन भर की मस्ती ,
याद आता है वो जीना बेलगाम ,
घर से दूर हूँ ,
इन्ही यादों में थक के चूर हूँ ,
यह भी क्या कोई जीने का ढंग है ,
न कोई सहारा न कोई संग है ,
हर पल घर जाने को उतावला हूँ ,
वापस उसी तरह जीने को बावला हूँ ,
ले चले कोई मुझे वहाँ जहाँ से मैं आया हूँ ,
जिस जगह को मैं कह सकू अपना और जिसके लिए न मैं पराया हूँ …..
याद आती है वो शाम ,
याद आती है माँ की सीख ,
याद आता है वो घर का आराम ,
याद आता है घर का हर कोना ,
याद आतें है घर के वो काम ,
याद आता है वो देर से जागना ,
याद आता है वो अल्प विराम ,
याद आती है वो दिन भर की मस्ती ,
याद आता है वो जीना बेलगाम ,
घर से दूर हूँ ,
इन्ही यादों में थक के चूर हूँ ,
यह भी क्या कोई जीने का ढंग है ,
न कोई सहारा न कोई संग है ,
हर पल घर जाने को उतावला हूँ ,
वापस उसी तरह जीने को बावला हूँ ,
ले चले कोई मुझे वहाँ जहाँ से मैं आया हूँ ,
जिस जगह को मैं कह सकू अपना और जिसके लिए न मैं पराया हूँ …..
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