Wednesday, November 02, 2011

वो भी क्या दिन थे


मम्मी के पराठे, पापा की स्कूटर पर फर्राटे,

साइकिल से गिरना, भरी दोपहरी में क्रिकेट खेलना,

स्कूल से लौटते वक्त समोसे, वो भरे मूंह से लगाये कह्कसे,

छुटियाँ गर्मियों की, मूंगफलियाँ सर्दियों की,

वो गाना गाते हुए नहाना, दिन भर खयाली पुलाव पकाना,

रोज़ दो घंटे की पढाई, बीच में चार बार बहन से लड़ाई,

वो सन्डे का इंतज़ार, क्रूर सिंह का यकू और शेर खान की दहाड़,

जाने क्यों बचपन बीत गया, लगे सब इतना नया,

वो क्या है जिसे पाते पाते हम खो गए, हम क्यों इतने बड़े हो गए!!

1 comment:

Poetries inspired by life as it comes!

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