Saturday, May 02, 2020

गिरते रहना चाहिए

भागते भागते गिर गया था
थोड़ी देर लगी उठने में, थक जो गया था
साफ कुछ दिख नहीं रहा था
पलकों पे कुछ नमी सा एहसास था
कुछ कह भी नहीं पाया
गला जो था भर आया
उतने में ही दोस्तों ने भी हाथ खींच लिए
अपनों ने भी मौका देख तानें दो कस दिए
मैंने भी मौके की नज़ाकत समझी
मरहम पट्टी करी, चोट गहरी थी
देखते देखते वक्त बहुत निकला
पर कौन सच में है अपना, पता चला
कुछ दिन में फिर सफर पे निकल पड़ेंगे
मंज़िल मिले ना मिले, थोड़े अपने ढूंढ लेंगे

No comments:

Poetries inspired by life as it comes!

Popular Posts