Sunday, July 08, 2012

कुछ दूर ही तो जाना है



आज जो संग हो चले
बस कल तक निभाना है

कहाँ रुक जाए कौन

किसी का कोई ठिकाना है

सफ़र है थोड़ी सी दूर का

बातों-बातों में बिताना है


मिले जो साड़ी खुशियाँ बन मुसाफिर
ना मिले थोड़े ग़म तो क्या फ़साना है

इतना सा जो है रास्ता
मुस्कुराहटों से ही तो सजाना है

है जो अपना
किसी ने मांग लिया तो क्या जताना है

जो पा लिया सो पा लिया
ना मिले कुछ उसके लिए क्या घबराना है

जो बढ़ाया किसी ने हाथ तो ठीक

खुद गले लगाने में क्या शर्माना है

चलते चलो

बस कुछ दूर ही तो जाना है


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