Thursday, December 27, 2012

Ye waqt ab wo na raha




माहौल कितना अजीब हो गया, इंसान कितना बदल गया,

फेसबुक वाली नजदीकीयों में भी मेरा दोस्त मुझसे कितना दूर हो गया,

आज एंग्री बर्ड्स का लेवल पार करना एक एंग्री दोस्त को मनाने से ज्यादा ज़रूरी हो गया,

वक़्त कैसा कमीना हो गया, रिश्ते निभाना कितना सरदर्द हो गया,

ट्विटर वाले followers के ज़माने में भी दोस्तों ने follow करना छोड़ दिया,

कल तक बाइक पर चिपक कर बैठने वाली गर्लफ्रेंड का आज कार में भी BBM करना कितना इम्पोर्टेन्ट हो गया,

यूँ ही कुछ साल हो गए साथ भुट्टा खाए, 

एक अरसा हो गया कुछ फुर्सत के पल बिताये,

ये ज़माना कितना बेशर्म हो गया, 

ये सोशल नेटवर्किंग हर ख़ुशी टालने का बहाना हो गया,

iPhone का मॉडल बदलता गया, 

ऑफिस का अधूरा काम पूरा करने के लिए थोड़े और टॉक टाइम का सहारा मिल गया,

घर तो जैसे सिर्फ रात गुज़ारने का अड्डा हो गया, 

वो सुन्दर चार दिवारी का सपना सिर्फ ब्रांडेड फर्नीचर और एलसीडी से पूरा हो गया,

मेरा बर्थडे अब गूगल याद दिलाता है, 

मैं तो थक कर सो रहा होता हूँ जब कोई बिछड़ा दोस्त 12 बजे फ़ोन मिलाता है,

कोई मेरी वो साइकिल लौटा दो जिससे मैं वक़्त में पीछे चला जाऊं, 

पर क्या करूँ एक और दिन रोबोट सा बिताना है ताकि इस महंगी कार की EMI चूका पाऊं


1 comment:

Anonymous said...

This poem is reality of life...I also felt the same...hamare thought process kitne milte hain...tabhi toh bhagwan ne hamari jodi banayi hai.....dittooo...same pinch badawala...uiiiiiiiiiiiiiiiiii....:)

Poetries inspired by life as it comes!

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