Monday, December 28, 2009

चार दिन



अभी चार ही तो दिन हुए है

जो इस हवा में खुल के सांस ली है
जो इन बारिश की बूंदों को महसूस किया है
जो सूरज की इस तपिश को सहा है
जो तारो को छाँव समझना शुरू किया है
ठहरो अभी और वक़्त लगेगा

अभी चार ही तो दिन हुए है

जो देख देख के समझना शुरू किया है
जो हाथों को हिला के अपने होने का एहसास दिलाना शुरू किया है
जो आँख बंद कर के सोचना शुरू किया है
जो धीरे धीरे चलना सीखा है
ठहरो अभी और वक़्त लगेगा

अभी चार ही तो दिन हुए है

जो इस भीड़ में अपनी जगह बनाना शुरू किया है
जो गैरों में अपनों को तलाशना शुरू किया है
जो किसी किसी पे भरोसा करना शुरू किया है
जो अपनी परछाई को अपना समझना शुरू किया है
ठहरो अभी और वक़्त लगेगा

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